Monthly Archives: December 2018

गवाँर

गवाँर एक फली है सभ्य समाज की, अंधियारी गली है। शिक्षित फूलों के गुलदान में, बट्ठर कली है। ज्ञान की जहा कमी, वहाँ खूब फूली-फली। इसकी सामान्य समझ से ठनी, मद-अहं से भरी है। गवाँर-पन का गहना, दूर से ही … Continue reading

Posted in Poetry | Tagged , , | 1 Comment

अल्लाह-राम

तेरे अल्लाह, मेरे राम या मेरे अल्लाह, तेरे राम तेरा-मेरा करती दुनिया, कहा ये कहती गीता-कुरान। पंथ अनेक पर एक इंसान, नाम अनेक पर इक भगवान, भिन्न-भिन्न पथ बतलाते सब, अंत में सबका लक्ष्य समान। धर्म-अधर्म बस दो ही जात, … Continue reading

Posted in Poetry | Tagged , | 3 Comments